बुधवार, 15 मई 2013



मुसलमानों को अपनी सोच में बदलाव लाना होगा।

मो. रफीक चौहान(एडवोकेट)

सरकारी आंकड़ों के अनुसार भारत की कुल का 15 फीसदी से ज्यादा  अबादी मुसलमान की हैं। आबादी के हिसाब से  इंडोनेशिया के बाद सबसे ज्यादा मुसलमान भारत में रहते हैं। इनमें शहरीकरण का प्रतिशत भी सामान्य आबादी से ज्यादा है, लेकिन अफसोस इस बात का है कि इनमें साक्षरता की दर अन्य वर्गों की अपेक्षा बहुत कम है। देश की कुल मुस्लिम आबादी का तकरीबन 40 फीसदी हिस्सा अन्य पिछड़ा वर्ग की श्रेणी में आता है।

सन् 2001 की जनगणना के अनुसार देश में मुसलिम आबादी वाले राज्य में उत्तर प्रदेश, जहां 18.5% (30.7 मिलियन) आबादी मुसलमानों की है, वहीं पश्चिम बंगाल में मुसलमान (20.2 मिलियन) 25% और बिहार में (13.7 मिलियन) 16.5% मुसलमान रहते हैं। सबसे ज्यादा मुसलमानों की आबादी असम (31%), पश्चिम बंगाल (25%) और दक्षिणी राज्य केरल में (24.7%) में है। भारत में दो और ऐसे राज्य (लक्षद्वीप की  93%  और जम्मू और कश्मीर की 67%) मुसलिम आबादी है। लेकिन, केरल को अगर छोड़ दें, तो सभी राज्यों में मुसलमानों की शैक्षणिक स्थिति और आर्थिक स्थिति काफी चिन्ताजनक है।
अगर देश की राजधानी दिल्ली की बात करें तो इसकी भी हालत ज्यादा अलग नहीं है। 11.7 फीसदी मुस्लिम आबादी वाले राज्य दिल्ली में 66.6 फीसदी मुसलमान शिक्षित हैं, जिनमें 59.1 % साक्षर महिलाएं है। दिल्ली में रहने की वजह मुसलमानों में साक्षरता की दर संतोषजनक जरूर है, लेकिन, रोजगार पाने के लिए ये भी नाकाफी है। जिसका नतीजा है कि दिल्ली में सिर्फ 30.1% मुसलमानों को ही रोजगार मुहैया है। मतलब साफ है कि मुसलमानों में साक्षरता की दर बढ़ी जरूर है, लेकिन उनके पास ऐसी शिक्षा नहीं है जो उन्हें रोजगार दिला सकें।
यूं तो शिक्षा किसी भी समुदाय के विकास के लिए अहम है। लेकिन, दूर्भाग्यवश आज मुसलमानों के पिछड़ेपन की असल वजह भी शिक्षा ही है। मुसलमानों के शैक्षिक, सामाजिक व आर्थिक हालात को सुधारने के लिए केन्द्र व राज्य सरकारों के तमाम प्रयास भी मुसलमानों हालात सुधारने में अब तक ना काफ़ी साबित हुए हैं।

ऐसे हालात में हमें बड़ी संजीदगी से मुसलमानों के हालात पर गौर करना होगा। आंकड़ों के मुताबिक भारत में ज्यादातर मुसलमान ग़रीब किसान या छोटे कारोबारी है जो अपने बच्चों को मदरसों में ही पढ़ने भेज सकते हैं। ऐसे में अगर हम इन मदरसों की पुरानी शिक्षा व्यवस्था को आधुनिक नहीं बनाएँगे। तो तब तक ज्यादातर मुस्लिम बच्चों को हम अच्छी शिक्षा नहीं दिला सकते।

गौरतलब है कि गांवों के 15 से 30 फीसदी मुसलमान के बच्चे अपनी पहली पढ़ाई मकतब से शुरू करते हैं, और फिर आगे की पढ़ाई मदरसा में करते हैं। सच्चर कमेटी रिपोर्ट भी ये खुलासा कर चुकी है कि 4 फीसदी मुस्लिम बच्चे आज  भी फुलटाइम सिर्फ मदरसों में ही पढ़ते हैं।
ऐसे में जरूरत इस बात की है कि इन मदरसों को अब हाईटेक बनाया जाए, ताकि यहां से निकलने वाले बच्चे आधुनिक शिक्षा लेकर इतना परिपक्व हो जाएं कि वे इंजीनियर और डाक्टर बन सकें। इसके लिए इन मदरसों को भी इंटरनेट, तकनीकी शिक्षा सुविधा प्रदान कर आधुनिक बनाने की अत्यन्त जरूरत है ताकि  ज्यादातर मुस्लिम बच्चों को अच्छी शिक्षा मिल सके और बाहरी दुनिया से बराबरी कर सकें। लेकिन, इसका नतीजा देखने के लिए हमें शायद लंबा इंतजार करना होगा।

अगर, हमें मौजूदा पीढ़ी के मुसलमानों की आर्थिक स्थिति में सुधार की थोड़ी भी फिक्र है, तो सबसे पहले हमें मुस्लिम समुदाय के लिए वक्फ की गई संपत्ति के पूरे ब्यौरे को पारदर्शी बनाना होगा। वक्फ से जुड़ी सभी जानकारियों को ऑनलाइन करना होता ताकि हर आदमी को वाक्फ की आमदनी और खर्च का हिसाब मिल सके। आज देश में करीब 4 लाख 90 हजार रजिस्टर्ड वक्फ बोर्ड हैं जिसके पास 6 लाख एकड़ की अचल संपत्ति है  जिसकी बाजार में निर्धारित कीमत करीब 1 लाख 20 हजार करोड़ है लेकिन इसका कोई हिसाब-किताब नहीं है। अगर  इस संपत्ति का सही तरीके से इस्तेमाल किया जाए तो यकीनन वक्फ बोर्ड सलाना करीब 12 हजार करोड़ की कमाई कर सकता है। और ये रकम मुस्लिम समुदाय के कल्याण के लिए कम नहीं है।
 
इसके साथ साथ मुसलमानों को प्रजातन्त्र और देश की राजनीति को समझकर  देश की राजनीति में सक्रिया भाग लेना होगा। जिसके लिए जरुरी है कि वो अपनी वोट की ताकत को समझे और अपने अन्दर लीडरशीप पैदा करें। ताकि वो अब तक की दरियां झाड़ने और कुर्सियां बिछाने की सभ्यता से बाहर आकर राजनीति सत्ता हासिल करें
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मंगलवार, 6 सितंबर 2011

अनुकरणीय व्यक्तित्व

इतिहास गवाह है जब-जब इन्सान धर्म के मार्ग से विचलित हुआ है। तो उसे सही रास्ता दिखाने, धर्म के अनुसार चलने और मर्यादित जीवन बीताने के उद्देश्य से विभिन्न समय और देश-समाज में विभिन्न महापुरुषों और धर्मप्रवतकों ने जन्म लिए है। जिन्होंने उस समय की परिस्थितियों और आवश्यकता के अनुसार समाज और मानव में आई विकृतियों, बुराईयों और दोषों को दूर करने के लिए लोगों का मार्गदर्शन किया है। ऐसे में देश और काल की परिस्थितियों के कारण कुछ महापुरुषों और धर्म प्रवतकों की विचारधारों में सामाजिक और दार्शनिक पहलुओं पर नैतिकता की स्थापना पर बुनियादी अन्तर दिखाई देता है। उन्होंने इन्सान के व्यक्तित्व के किसी एक पहलु पर अपेक्षाकृत अधिक बल दिया है। जैसे कि वेदान्त दर्शन शुद्ध रुप से अव्यावहारिक और घोर आत्मवादी है। जो संसार को माया मृग मरीचिका और जगतिक अस्तित्व को मात्र एक स्वप्न मानता है। वो कहते हैं “माया महा ठगिनी हम जानी, त्रिगुण फांस लिए कर बोले, बोले मधुर बानी” और “ जल में कुम्भ, कुम्भ में जल, कुम्भ फुटा जल जल ही समाना ये तत ना ज्ञानी जाना” जैसी उक्तियों को कह कर आत्मवादी पंथ के समथर्क इस दुनियां के अस्तित्व को नकारते और संसार को एक मुसाफिरखाना समझकर यूं कहते हैं। “ पानी केरा बुदबुदा, अस मानस की जात। देखत ही छिप जाएगा, जयों तारा प्रभात” अर्थात इन्सान का जीवन इस संसार में एक पानी के बुलबुले के समान है जो देखते ही देखते समाप्त हो जाता है।
इस के विपरित चार्वाक दर्शन शुद्ध् रुप से भौतिकवादी और स्वच्छंदता वादी है। जबकि मार्क्सवाद अर्थ प्रधान और फ्रायड मनोविश्लेषवादी काम प्रधान है। ये सभी इन्सान के कर्मों में मूल रुप से वसाना प्रभुत्व मानते हैं। जबकि बौद्ध् धर्म मूलत: पलायनवादी, दुखवादी और निराश भाव प्रधान है। दुसरी और मूर्ति पूजा और अवतारवाद अवैज्ञानिक तर्कों पर अधारित है। जबकि हम जिन्दगी रुपी नाव को एक-एक पहलु और एक-एक टुकड़े की पतवार के सहारे और भरोसे इस संसार रुपी सागर को पार नहीं कर सकते और न ही जिन्दगी के उसली मकसद को ही हासिल कर सकते।
जबकि हजरत मुहम्मद साहब (सल्ल0) का योगदान इस सन्दर्भ में मानव समुदाय के लिए महत्वपूर्ण और उल्लेखनीय रहा है। आप की दृष्टि से इन्सान के जीवन का कोई ऐसा पहलु नहीं बचा। जिसके बारे में आपने अपने विचार व्यक्त न किए हों। आपकी शिक्षाएं शाश्वत सार्वकालिक, सम्पूर्ण और वैज्ञानिक हैं। जो दुनियां के अन्य धर्म प्रवर्तकों, दर्शनिकों, तर्कशास्त्रियों और चिंतकों में विशिष्ट स्थान प्रदान करती है। आपने जीवन-दर्शन, आत्मा-परमात्मा, जीवन-जगत, लोक-परलोक, अमल-उसुल, व्यक्ति और समाज में एक सुन्दर समन्वय व समांजस्य बैठाने का प्रयास किया है। आपने इन्सानों को एक निराकार ईश्वर के प्रति आस्था रखते हुए, संयम पूर्वक जीवन निर्वाह करने का संदेश दिया है। आपने दुनियां को मायावी नगर कहकर व्यक्तिगत, परिवारिक और सामाजिक जिम्मेदारियों से भागने की बजाए अपने कर्म, व्यवहार और आचार विचार को उंचा उठाने पर बल दिया है।
उस समय के असभ्य समाज में प्रचलित कन्या-हत्या, नशा और मुर्ति पुजा जैसी कुरीतियों को खत्म करने के लिए इस्लाम की शक्ल के रुप में जीवन की एक ऐसी बुनियाद रखी जो मुकम्मल, पुख्ता और वैज्ञानिक सोच पर आधारित है। जिसमें आदमी और औरत के किरदार को उंचा बनाने के लिए रोजा, नमाज, जकात, तौहीद और हज को एक मजबुत सीढ़ी बनाया गया है। रोजा और नमाज जहां जीवन में आत्म ज्ञान और चरित्र बल देता है वहीं इन्सान तौहीद से धार्मिक भटकाव से बचता है। जबकि जकात सामाजिक बराबरी और हज सामुहिकता एंव व्यापकता को बोध करती हैं।
हजरत मुहम्मद साहब (सल्ल0) ने विश्व समुदाय को एक ऐसा जीवन दर्शन प्रदान किया है जो बहुयामी है। जिसमें जीवन के पहलु पर मार्ग दर्शन किया है। आप नेता ही नहीं बल्कि कामयाब व्यापारी, सैनिक, चिंतक, धर्मोंपदेशक, तत्वचिंतक, दार्शनिक और तपस्वी के साथ एक सफल गृहस्थी भी थे। आपकी शिक्षा में अर्थशास्त्र, धर्म-आघ्यात्म, समाजशस्त्र, लोकव्यवहार आदि ज्ञान-विज्ञान की विभिन्न शाखाओं का सुन्दर निचौड़ है। जो शताब्दियों से विश्व के देशों और बुद्धिजीवियों को अपनी ओर आर्कषित करता आ रहा है। यहीं कारण है कि इस्लाम की शुरुआत छोटे से भौगोलिक तथा सामाजिक दायरे से हुई, जिसने देखते-देखते अब एक विशाल वट वृक्ष का रुप ले लिया है। यह इस लिए स्म्भव हो पाया है कि आपकी शिक्षाऐं वक्त की कसौटी पर सही उतरी है। इसी लिए दुनियां की हर जुबांन बोलने वालो ने इनको सहर्ष अपनाया है।
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मो. रफीक चौहान(एडवोकेट)

गुरुवार, 14 अक्टूबर 2010